ज़मीर कांप ही जाता है आप कुछ भी कहें,
वो हो गुनाह से पहले या हो गुनाह के बाद.
एक शायर ने जब यह लिखा होगा तो शायद उसके दिलो-दिमाग में बहुत पवित्र विचार भरे होंगे, वरना आज के दिन ज़मीर की बात करना भी बेमानी हो चला है. भ्रष्टाचार हमारे अन्दर इतनी बुरी तरह से घर कर चुका है कि विचारों की पवित्रता की बात करने वाले की तो खिल्ली उडाई जाती है. क्या यह विडम्बना नहीं है. हमारी शिक्षा व्यवस्था में नैतिक शिक्षा का कोइ स्थान नहीं है इसलिए ही हमारे नौजवान इमानदारी, पवित्रता, नैतिकता जैसे शब्दों की कीमत नहीं जानते. क्या हम कुछ कर पायेंगे इसे बदलने के लिए.
रविन्द्र सिंह
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