Friday, April 22, 2011

सड़क पर एक आदमी/अशोक वाजपेयी

वह जा रहा है
सड़क पर
एक आदमी
अपनी जेब से निकालकर बीड़ी सुलगाता हुआ
धूप में–
इतिहास के अंधेरे
चिड़ियों के शोर
पेड़ों में बिखरे हरेपन से बेख़बर
वह आदमी ...

बिजली के तारों पर बैठे पक्षी
उसे देखते हैं या नहीं – कहना मुश्किल है
हालांकि हवा उसकी बीड़ी के धुएं को
उड़ाकर ले जा रही है जहां भी वह ले जा सकती है ....

वह आदमी
सड़क पर जा रहा है
अपनी ज़िंदगी का दुख–सुख लिए
और ऐसे जैसे कि उसके ऐसे जाने पर
किसी को फ़र्क नहीं पड़ता
और कोई नहीं देखता उसे
न देवता¸ न आकाश और न ही
संसार की चिंता करने वाले लोग

वह आदमी जा रहा है
जैसे शब्दकोष से
एक शब्द जा रहा है
लोप की ओर ....

और यह कविता न ही उसका जाना रोक सकती है
और न ही उसका इस तरह नामहीन
ओझल होना ......

कल जब शब्द नहीं होगा
और न ही यह आदमी
तब थोड़ी–सी जगह होगी
खाली–सी
पर अनदेखी
और एक और आदमी
उसे रौंदता हुआ चला जाएगा।

लोकतंत्र.

भारत एक लोकतान्त्रिक राष्ट्र है, लोकतंत्र में एक गंभीर खामी होती है कि सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित किया जाता है, मतदाता एक चुने हुए प्रत्याशी को भेजते हैं उनके हितों की रक्षा के लिए. समस्या गंभीर इसलिए हो जाती है क्योंकि बहुत से मत उस प्रत्याशी के विरुद्ध भी होते हैं और प्रत्याशियों को भी और मतदाताओं को भी इस बात का पता रहता है. अतः ये कहा जा सकता है कि वह प्रत्याशी कुछ गिने चुने ३०-३५ प्रतिशत मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है, न कि एक पूरे क्षेत्र का. भारत जैसे विकासशील देशों में समस्या यहीं से उत्पन्न होती है. जनता को पूरा प्रतिनिधित्व नहीं मिलता, रही सही कसर तब पूरी हो जाती है जब विपक्ष में जिन्होंने अपने मत का प्रयोग किया है उनके कार्य नहीं होते. यहाँ पैदा होता है लोकतंत्र में गतिरोध, जो गैर सामाजिक संगठनों को बढ़ावा देता है और भ्रष्ट विचारों की नींव रखता है. जो विधायक, सांसद या पार्षद विपक्ष में होते हैं उनके जायज कामों को भी रोका जाता है. क्या इसे जायज लोकतंत्र कहा जायेगा किसी भी हाल में? सरकार का काम जनता का विकास करना है, न की अपने कुछ कार्यकर्ताओं का विकास करना. भले ही दल कोई भी रहा हो, पर विकास हमेशा कार्यक्रताओं का ही होता आया है. क्या यह परिदृश्य बदला जा सकता है? यदि नहीं तो यह मान लेना श्रेयस्कर होगा कि हम अभी एक अविकसित लोकतंत्र में जी रहे हैं क्योंकि लोकतंत्र का सीधे सीधे मतलब यह हुआ कि लोगों के द्वारा चलाया जा रहा तंत्र. यदि पक्ष के साथ विपक्ष को प्रतिनिधित्व न मिले तो यह कम से कम आधी जनता का तो अपमान है ही. कृप्या सोचें.

Tuesday, April 12, 2011

दोहरे मापदंड

हर रोज एक धमाका करने वाली कांग्रेस पार्टी ने एक और धमाका किया है. भारत की धर्मनिरपेक्षता की ठेकेदार इस पार्टी ने अपने पत्र "कांग्रेस सन्देश" में शहीदों को उनकी जातियों से संबोधित किया है. इसे हम क्या कहेंगे? तुच्छ मानसिकता या सोची समझी चाल? इतनी बड़ी पार्टी अपने राष्ट्रीय पत्र में इस प्रकार का लेख छापे और इस से पहले इस बारे में कहीं कोई अंदरूनी बातें न हों, इस बात की संभावना से कम से कम मैं इनकार करता हूँ. धर्मनिरपेक्षता का ढोल पीटने वाली इस पार्टी ने हमेशा से इस देश को जाती और धर्म में बाँट के रखा है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण अभी जनसँख्या गणना के समय आया जब इन्होने गणना में जाती को आवश्यक बना दिया, आखिर क्यूँ, किसलिए यह करने की जरूरत आन पड़ी? जब देश का युवा खुद को जाती व्यवस्था के चंगुल से छुडवाने की कोशिश कर रहा हो, इस प्रकार के प्रयास पर भोहें तनना लाजमी है. अब शहीदों को देख लीजिये, आखिर क्या जरुर आन पड़ी आजादी के इतने साल के बाद कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के जीवन का परिचय उनकी जाती से दिया जाए. लगता तो यही है कि जैसे भारत में उग्रवाद की जाती और धरम है, वैसे ही आज से शहीदों की भी जाती और धर्म होगा. हम आगे जा रहे हैं या पीछे, ये प्रश्न मेरे मन में आज उमड़ रहा है. 
     इस देश को भगवा आतंकवाद से खतरा है, हमारी सभ्यता सांप्रदायिक पार्टियों के कारण खतरे में पड़ गयी है. ये सब ढकोसले यहीं से तो है, जो गर्व करती है भारत की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी होने का. यदि ये गर्व करना ठीक है तो भारत की असफलताओं को भी आपको ही अपने सर पर लेना होगा, क्यूंकि ९५ प्रतिशत राज तो कांग्रेस का ही रहा है, हालांकि सभी बुराइयों के लिए ये भारतीय जनता पार्टी को जिम्मेदार ठहराते हैं जिसने जुम्मा जुम्मा ६ वर्ष ही राज किया है १९४७ से आज तक. स्वामी असीमानंद को मालेगांव विस्फोट के केस में पकड़ा जाता है और उनके पुलिस के सामने दिए बयान लीक हो जाते हैं, ये हैरानी ही तो है. सभी बुराइयों के लिए भगवा आतंक वाद ही तो जिम्मेदार है. कल कांग्रेस के प्रिय चैनल NDTV की मालिक बरखा दत्त ने नया शगूफा छोड़ा की कश्मीर में पत्थर फैंकने वाले युवा बिलकुल सही विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और श्री अन्ना हजारे के साथ जुड़े लोगों का तरीका गलत है. इसे क्या कहेंगे? 
      राहुल गाँधी जी जो श्री अभिषेक मनु सिंघवी के अनुसार भारत के युवाओं के सबसे बड़े नायक हैं, केरल में प्रचार करते हुए कहते हैं की ९३ वर्षीय अच्युतानंद को मत जिताइये, इस देश को युवाओं की जरुरत है, और पड़ोस के राज्य तमिलनाडु में करूणानिधि जैसे वयोवृद्ध नेता के लिए प्रचार कर रहे हैं. दोहरे मापदंडों का इस से बड़ा उदाहरण शायद ही भारत की वर्तमान राजनीति में मिले!. इनका हश्र वही होगा जो १९८७ के बंगाल के प्रचार में इनके दिवंगत पिता श्री राजिव गाँधी का हुआ था, उन्होंने भी बडबोले पन का परिचय दिया था और ज्योति बासु के विरुद्ध प्रचार किया था, कांग्रेस को पुरे राज्य में मूंह की खानी पड़ी थी, अब केरल में यही होगा. कम से कम चुनाव रैलियों में उभर रही जनता से तो यहीं अंदाजा लग रहा है. बेशक असम और पश्चिम बंगाल में पार्टी आगे है पर केरल और तमिलनाडु में इनका हाल बहुत बुरा है. नरेंद्र मोदी जी को प्रचार करने नहीं दिया जाता, देखिये संविधान की विडम्बना की एक प्रदेश के मुख्यमंत्री को हवाई अड्डे पर रोक लिया जाता है. कुछ देर पहले तक पूज्यनीय श्री अन्ना हजारे जैसे ही मोदी शासन की प्रशंसा करते हैं, लोग उन्हें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का एजेंट तक बोल देते हैं, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के एक महान नेता ने तो उन्हें नगर पालिका का चुनाव लड़ने तक की बात कह डाली. कोई उनसे पूछे की यदि सामाजिक जीवन में चुनाव लड़ने से ही यदि इस बात का निर्धारण होता है की कोई बड़ा नेता है या नहीं तो महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता क्यों कहा जाता है? जय प्रकाश नारायण का उदाहरण लोग क्यों देते हैं? 

एक नयी सोच के साथ नया भारत बनाना है तो ऐसी हर एक ताकत से बचना होगा जो जोड़ने की बजाय तोड़ने का काम करती हो. 
                      
 रविन्द्र सिंह 

Monday, April 11, 2011

लीक पर वे चलें जिनके/ सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

लीक पर वे चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं

साक्षी हों राह रोके खड़े
पीले बाँस के झुरमुट
कि उनमें गा रही है जो हवा
उसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं

शेष जो भी हैं-
वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ
गर्व से आकाश थामे खड़े
ताड़ के ये पेड़;
हिलती क्षितिज की झालरें
झूमती हर डाल पर बैठी
फलों से मारती
खिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा;
गायक-मण्डली-से थिरकते आते गगन में मेघ,
वाद्य-यन्त्रों-से पड़े टीले,
नदी बनने की प्रतीक्षा में, कहीं नीचे
शुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल;
सभी, बन रहा है कहीं जो विश्वास
जो संकल्प हममें
बस उसी के ही सहारें हैं ।

लीक पर वें चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं

Congress vs Modi

कल श्री अन्ना हजारे के साथ एक अजीब वाक्या हुआ, उन्होंने नरेन्द्र मोदी जी की तारीफ़ क्या करदी, कांग्रेस में भूचाल आ खड़ा हुआ और तरह तरह की बातें मीडिया में कही जाने लगी. पुरजोर के बावजूद भी मैं ये सोचने और समझने में असफल हूँ कि मोदी जी से कांग्रेस को इतनी अधिक घृणा क्यूँ है. एक भाई ने तो यहाँ तक कह दिया कि मोदी जी के हाथ खून से रंगे हैं, उनकी तारीफ़ नहीं होनी चाहिए. अगर गुजरात दंगों में मोदी जी के हाथ खून से रंगे हैं तो फिर कांग्रेस तो पूरी खून में डूबी हुई है, गुजरात दंगों को छोड़ दें तो सभी दंगे कांग्रेस राज में ही तो हुए हैं. इनके मंत्री कमलनाथ को जब अमेरिका कि कोर्ट बुलाती है सिख विरोधी दंगों में तो कांग्रेस का मुंह बंद कैसे हो जाता है. दिवंगत अर्जुन सिंह जी की भोपाल गैस त्रासदी के प्रमुख अभियुक्त को भारत से भगाने में क्या भूमिका थी, इसके बारे में पूरा देश जानता है कांग्रेस के सिवा. सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर आदि अनेक बैठे हैं इसमें. उन्हें क्या कहेंगे? 

Sunday, April 10, 2011

Nadaani

ये दिन भी अजीब हो चले हैं, जाने कहाँ से इक आंधी चली,वहां दिन निकला, यहाँ हम चल पड़े
उठे थे जब याद था कि आज कुछ आराम फरमाएंगे
पर नादानी देखो, आराम में भी ये कविता निकल रहीं हैं.

A Journey just began

 नमस्कार आप सब को प्रणाम, 

आज एक अजीब विडम्बना से गुजर रहा हूँ. भ्रष्टाचार के विरुद्ध चल रहे राष्ट्रव्यापी अभियान की परिणति क्या होगी, ये समझने का गंभीर प्रयास सुबह से मेरे दिलोदिमाग में चल रहा है. अब जब कलम चल ही निकली है तो इसके परिणाम निकलना भी लाजमी है, निकलने भी चाहिए इसमें कुछ गलत भी क्या है. पर गंभीर समस्या ये है की अपनी भाषा में सोचना भी आज कल पाप हो चला है. मैंने तो अपने सम्पूर्ण जीवन को एक उद्देश्य की और लगा दिया है पर साथी मिलेंगे क्या? जबसे वकालत की थी मेरा दिमाग भी अंग्रेजी हो चला था. सोचकर भी न सोच पाया कि क्यूँ हम विदेशी भाषा को इतनी तवज्जो देते हैं. अगर मैं अंग्रेजी में लिखूं, इसमें पढू और इसे बोलूं तो मुझे समझदार समझा जाता है. विश्व की सबसे विलक्षण भाषा संस्कृत और उससे निकली हिंदी आदि भाषाओँ में लिखना तो जैसे पाप है. क्या ये दिमागी भ्रष्टाचार नहीं है. क्या हम खुद को धोखा नहीं दे रहे. आखिर क्यूँ अंग्रेजी लिखने और बोलने से ही इस देश में समझदार पैदा होते हैं. आखिर क्यूँ? 

लगता तो यही है की हम अपनी भाषा और अपनी संस्कृति के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं. नहीं तो हमारा नाम भारत होता विश्व मानचित्र मैं न की इंडिया. जब तक ये मानसिक भ्रष्टाचार और गुलामी नहीं निकलेगी मुझे नहीं लगता कि भारत एक हो जाएगा. भ्रष्टाचार के विरुद्ध सारा देश एक हो गया है मुझे तो इसमें भी शक है. ये भारत १९४२ में एक नहीं हुआ था, २०११ में क्या होगा. लोगों ने ब्रिटिश शाषन के अंत कि आलोचना की थी, श्री अन्ना हजारे के कदम को क्या गंभीरता से लेंगे. फेसबुक नें इसमें बड़ा योगदान दिया, लीबिया, मिस्र, सीरिया आदि के बाद भारत में इसका पूरा प्रयोग हुआ. पर क्या लोग रिश्वत देना बंद कर देंगे? इस आन्दोलन में किसी को स्वामी अग्निवेश से दिक्कत थी, कोई श्री अन्ना हजारे को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का एजेंट बताने में तुला था, एक भाई तो किरण बेदी जी को ही गाली देने में तुला था की अन्ना जी भूखे हैं और किरण जी बेशर्मी से जल का पान कर रही हैं. क्या ऐसे हम भारत को जगायेंगे. स्वामी रामदेव के मंच पर आते ही तो जैसे कांग्रेस के लोगों के पेट में उबाल आ गया, कोई उन्हें ढोंगी तो कोई अन्य गाली से संबोधित कर रहा था. क्या ऐसे बदलेगा भारत. 

गाँधी टोपी पहन कर जंतर मंतर पे खड़े हो कर फोटो खिंचवाने वाले लोग भारत को बदलेंगे? जो देश गाँधी को न समझ पाया वो १०० घंटे में बदल जाएगा, मुझे इसमें संदेह है. मेरे एक प्रिय मित्र हैं, जो अक्सर मुझसे झगड़ते हैं की अहिंसा से कुछ नहीं हो सकता, एक बात तो तय है की उनकी जुबान पर ताला लग गया इसके साथ ही. पर परिस्थितियाँ अभी बहुत मुश्किल हैं और लड़ाई बाकी है. ये अन्ना जी ने खुद भी कहा कि ये शुरुआत भर है. भारत को बदलाव कि जरूरत है, ये निश्चित है पर ये फैशन नहीं बदलाव होना चाहिए. तभी ये लड़ाई सार्थक होगी. अपने अन्दर भारतीय को खोजें जो कहीं अमेरिका में जाकर गम हो गया है, ये देश खुद ब खुद बदल जाएगा. सम्मान दीजिये अपनी सोच को, अपनी भाषा को, अपनी वेशभूषा को, और मेरे वे मित्र जो हिंदी में १ से सौ तक भी नहीं गिन सकते, वो ये सीख लें, भारत कि आत्मा समझ आनी प्रारंभ हो जायेगी.

अंत में एक शेर के साथ इसका समापन करता हूँ.

"चलो अच्छा हुआ काम आ गई दीवानगी अपनी
वरना ज़माने-भर को समझाने हम कहाँ जाते
क़तील अपना मुकद्दर ग़म से बेगाना अगर होता
तो फिर अपने पराए हम से पहचाने कहाँ जाते "

जय हिंद, जय भारत 

Kalam waapis aa gayi hai


"शब्दों से सुनो, बंदूक की ध्वनि निकलती है, कलम स्याही नहीं, बारूद के अक्षर उगलती है !" कलम तब हाथ में हुआ करती थी, जो अब फेसबुक से आग उगलती है. श्री अन्ना हजारे का मिशन यहीं तो शुरू हुआ था जो राष्ट्रव्यापी आन्दोलन बन गया है. कहा जाता है कोई भी क्रांति तब तक सफल नहीं होती जब तक उसे जनता का समर्थन हासिल न हो. भारत वर्ष की विडम्बना यही है, इतनी बड़ी जनसँख्या के बावजूद भी कोई भी क्रांति आज तक पूरी तरह से सफल नहीं हुई.1857 की क्रांति को ही ले लीजिये, क्रांति के नायकों को भारत वर्ष के सिपाहियों और कुछ गद्दार राजाओं ने समाप्त किया. क्रांति असफल हुई. बापू का असहयोग आन्दोलन जो एक बड़ी क्रांति के रूप में परिवर्तित हो गया था, चौरी चौरा में हुई एक छोटी सी भूल के कारण असफल हुआ.1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन तो था ही कमाल का, 30 करोड़ के ऊपर जनसँख्या के बावजूद भी कुछ लाख लोग इसे चलाते रहे. वह तो भला हो द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश को मिली हार का, जो उन्हें अपनी खुद की समस्याओं के कारण भारत को छोडना पड़ा, वरना आजादी तो बहुत दूर थी. अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले नेताजी सुभाष चंदर बोस ने कहा था की मुफ्त में मिली आजादी देश वासियों को हजम नहीं होगी और वे भ्रष्ट बन जायेंगे. नेहरु जी जैसे कमरों में बंद नेता प्रधानमन्त्री बना दिए गए, और पटेल जैसे नेता पीछे छोड़ दिए गए. ये विडम्बना ही तो है कि नेहरु के परिवार में इस पीढ़ी को छोड़ कर सब पीढ़ियों को भारत रत्न से नवाजा गया और भारत वर्ष को अखंड बनाने वाले पटेल को गुजरात के बाहर कोई पूछता नहीं. नेहरु जी ने पटेल जी से एक ही जनपद माँगा था अपनी मर्जी से भारत में मिलाने के लिए, वह था कश्मीर, देखिये इसका क्या हाल है. हमारा इतिहास एतिहासिक भूलों से भरा हुआ है, जब दुनिया पूंजीवाद की और भाग रही थी नेहरु जी हमें समाजवाद की और ले गए जो रूस चला रहा था, चीन को अपना भाई घोषित किया. देखिये क्या नतीजा निकला, रूस का समाज वाद कबका असफल हो चुका, दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अब ११ मुल्कों में बाँट गयी है और चीन नें 1962 में भारत पर आक्रमण कर दिया. इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे छोटे मुल्क तरक्की में हमसे कहीं आगे चले गए और भारत अपने आप को पूंजी वाद से तरक्की के राह पर ले जा रहा है, 1948 के कश्मीर पर पाकिस्तान के आक्रमण पर जब भारत कि सेनायें कश्मीर से पकिस्तान को खदेड़ ही रही थी कि नेहरु जी को फिर सूझी कि संयुक्त राष्ट्र के पास चला जाये और संयुक्त राष्ट्र ने युद्ध विराम करवा दिया, नतीजा आधा कश्मीर पकिस्तान के पास चला गया. फिर आई एक और एतिहासिक भूल, तिब्बत को चीन का भाग घोषित करने वाला पहला मुल्क भारत था, अब चीन भारत में से अरुणाचल प्रदेश चाहता है और लद्दाख पर आँखें टेढ़ी करता है. ये तो हुआ नेहरु जी का कार्यकाल. आगे चलते हैं इंदिरा जी के कार्यकाल की और, जो लौह महिला कहलाती हैं. उनके कार्यकाल में व्यापक भ्रष्टाचार को देख कर भारत में एक व्यापक जन आन्दोलन चला श्री जय प्रकाश नारायण के नेत्रित्व में. देश की इस क्रांति को सम्पूर्ण क्रांति के नाम से जाना जाता है. देश बदल ही रहा था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा जी का चुनाव अवैध घोषित कर दिया, खिसियाई हुई इंदिरा जी ने आपात काल की घोषणा कर दी. कोई पूछे की आपातकाल की परिस्थितियाँ कहाँ आई? नेहरु जी भारत रत्न, इंदिरा जी भारत रत्न. फिर उनका बेटा भारत रत्न. अगली भारत रत्न होंगी त्याग की मूर्ति सोनिया मैडम, फिर उनका बेटा राहुल, फिर आगे का पता नहीं, राहुल ने शादी की नहीं, शायद प्रियंका का बेटा बने भारत रत्न. 

इन एतिहासिक भूलों को आखिर भारत कब तक बर्दाश्त करेगा. 

ये कलम अब रुकेगी नहीं, ये कलम अब झुकेगी नहीं. श्री अन्ना हजारे ने एक एतिहासिक भूल को आज समाप्त कर दिया, उस महान आत्मा को शत शत नमन. श्री राम धारी सिंह दिनकर की कविता से ये नोट समाप्त करता हूँ:

"जला अस्थियां बारी-बारी

चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल


जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल।
कलम, आज उनकी जय बोल


पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल।
कलम, आज उनकी जय बोल


अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल।
कलम, आज उनकी जय बोल"