Tuesday, April 12, 2011

दोहरे मापदंड

हर रोज एक धमाका करने वाली कांग्रेस पार्टी ने एक और धमाका किया है. भारत की धर्मनिरपेक्षता की ठेकेदार इस पार्टी ने अपने पत्र "कांग्रेस सन्देश" में शहीदों को उनकी जातियों से संबोधित किया है. इसे हम क्या कहेंगे? तुच्छ मानसिकता या सोची समझी चाल? इतनी बड़ी पार्टी अपने राष्ट्रीय पत्र में इस प्रकार का लेख छापे और इस से पहले इस बारे में कहीं कोई अंदरूनी बातें न हों, इस बात की संभावना से कम से कम मैं इनकार करता हूँ. धर्मनिरपेक्षता का ढोल पीटने वाली इस पार्टी ने हमेशा से इस देश को जाती और धर्म में बाँट के रखा है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण अभी जनसँख्या गणना के समय आया जब इन्होने गणना में जाती को आवश्यक बना दिया, आखिर क्यूँ, किसलिए यह करने की जरूरत आन पड़ी? जब देश का युवा खुद को जाती व्यवस्था के चंगुल से छुडवाने की कोशिश कर रहा हो, इस प्रकार के प्रयास पर भोहें तनना लाजमी है. अब शहीदों को देख लीजिये, आखिर क्या जरुर आन पड़ी आजादी के इतने साल के बाद कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के जीवन का परिचय उनकी जाती से दिया जाए. लगता तो यही है कि जैसे भारत में उग्रवाद की जाती और धरम है, वैसे ही आज से शहीदों की भी जाती और धर्म होगा. हम आगे जा रहे हैं या पीछे, ये प्रश्न मेरे मन में आज उमड़ रहा है. 
     इस देश को भगवा आतंकवाद से खतरा है, हमारी सभ्यता सांप्रदायिक पार्टियों के कारण खतरे में पड़ गयी है. ये सब ढकोसले यहीं से तो है, जो गर्व करती है भारत की सबसे पुरानी और बड़ी पार्टी होने का. यदि ये गर्व करना ठीक है तो भारत की असफलताओं को भी आपको ही अपने सर पर लेना होगा, क्यूंकि ९५ प्रतिशत राज तो कांग्रेस का ही रहा है, हालांकि सभी बुराइयों के लिए ये भारतीय जनता पार्टी को जिम्मेदार ठहराते हैं जिसने जुम्मा जुम्मा ६ वर्ष ही राज किया है १९४७ से आज तक. स्वामी असीमानंद को मालेगांव विस्फोट के केस में पकड़ा जाता है और उनके पुलिस के सामने दिए बयान लीक हो जाते हैं, ये हैरानी ही तो है. सभी बुराइयों के लिए भगवा आतंक वाद ही तो जिम्मेदार है. कल कांग्रेस के प्रिय चैनल NDTV की मालिक बरखा दत्त ने नया शगूफा छोड़ा की कश्मीर में पत्थर फैंकने वाले युवा बिलकुल सही विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं और श्री अन्ना हजारे के साथ जुड़े लोगों का तरीका गलत है. इसे क्या कहेंगे? 
      राहुल गाँधी जी जो श्री अभिषेक मनु सिंघवी के अनुसार भारत के युवाओं के सबसे बड़े नायक हैं, केरल में प्रचार करते हुए कहते हैं की ९३ वर्षीय अच्युतानंद को मत जिताइये, इस देश को युवाओं की जरुरत है, और पड़ोस के राज्य तमिलनाडु में करूणानिधि जैसे वयोवृद्ध नेता के लिए प्रचार कर रहे हैं. दोहरे मापदंडों का इस से बड़ा उदाहरण शायद ही भारत की वर्तमान राजनीति में मिले!. इनका हश्र वही होगा जो १९८७ के बंगाल के प्रचार में इनके दिवंगत पिता श्री राजिव गाँधी का हुआ था, उन्होंने भी बडबोले पन का परिचय दिया था और ज्योति बासु के विरुद्ध प्रचार किया था, कांग्रेस को पुरे राज्य में मूंह की खानी पड़ी थी, अब केरल में यही होगा. कम से कम चुनाव रैलियों में उभर रही जनता से तो यहीं अंदाजा लग रहा है. बेशक असम और पश्चिम बंगाल में पार्टी आगे है पर केरल और तमिलनाडु में इनका हाल बहुत बुरा है. नरेंद्र मोदी जी को प्रचार करने नहीं दिया जाता, देखिये संविधान की विडम्बना की एक प्रदेश के मुख्यमंत्री को हवाई अड्डे पर रोक लिया जाता है. कुछ देर पहले तक पूज्यनीय श्री अन्ना हजारे जैसे ही मोदी शासन की प्रशंसा करते हैं, लोग उन्हें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का एजेंट तक बोल देते हैं, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के एक महान नेता ने तो उन्हें नगर पालिका का चुनाव लड़ने तक की बात कह डाली. कोई उनसे पूछे की यदि सामाजिक जीवन में चुनाव लड़ने से ही यदि इस बात का निर्धारण होता है की कोई बड़ा नेता है या नहीं तो महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता क्यों कहा जाता है? जय प्रकाश नारायण का उदाहरण लोग क्यों देते हैं? 

एक नयी सोच के साथ नया भारत बनाना है तो ऐसी हर एक ताकत से बचना होगा जो जोड़ने की बजाय तोड़ने का काम करती हो. 
                      
 रविन्द्र सिंह 

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