ये दिन भी अजीब हो चले हैं, जाने कहाँ से इक आंधी चली,वहां दिन निकला, यहाँ हम चल पड़े
उठे थे जब याद था कि आज कुछ आराम फरमाएंगे
पर नादानी देखो, आराम में भी ये कविता निकल रहीं हैं.
उठे थे जब याद था कि आज कुछ आराम फरमाएंगे
पर नादानी देखो, आराम में भी ये कविता निकल रहीं हैं.
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