Monday, May 2, 2011

यह दिया बुझे नहीं/गोपाल सिंह नेपाली


यह दिया बुझे नहीं

घोर अंधकार हो
चल रही बयार हो
आज द्वार–द्वार पर यह दिया बुझे नहीं
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।

शक्ति का दिया हुआ
शक्ति को दिया हुआ
भक्ति से दिया हुआ
यह स्वतंत्रता–दिया

रूक रही न नाव हो
जोर का बहाव हो
आज गंग–धार पर यह दिया बुझे नहीं
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है।

यह अतीत कल्पना
यह विनीत प्रार्थना
यह पुनीत भावना
यह अनंत साधना

शांति हो, अशांति हो
युद्ध, संधि, क्रांति हो
तीर पर¸ कछार पर¸ यह दिया बुझे नहीं
देश पर, समाज पर, ज्योति का वितान है।

तीन–चार फूल है
आस–पास धूल है
बांस है –बबूल है
घास के दुकूल है

वायु भी हिलोर दे
फूंक दे, चकोर दे
कब्र पर मजार पर, यह दिया बुझे नहीं
यह किसी शहीद का पुण्य–प्राण दान है।

झूम–झूम बदलियाँ
चूम–चूम बिजलियाँ
आंधिया उठा रहीं
हलचलें मचा रहीं

लड़ रहा स्वदेश हो
यातना विशेष हो
क्षुद्र जीत–हार पर, यह दिया बुझे नहीं
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है।

No comments: