Sunday, June 12, 2011

एक आम आदमी का गुनाह!!

एक आम आदमी का गुनाह!!

सड़क पर चलते एक आम आदमी को पुलिस ने पकड़ लिया. यह छोटी सी कविता उस आम आदमी और पुलिस की वार्ता का दृष्टान्त है. इसकी रचना मैंने खुद की है. 

सड़क पर चलते उस आदमी को पुलिस ने पकड़ लिया,
उन्हें हवालात में बिठाया गया,
तुम क्यों आये पूछा बराबर वाले कैदी ने,
जवाब मिला पता नहीं. 

उन्होंने दूसरे कैदी से पूछा,
तुम क्यों आये भाई हवालात में,
शकल से तो तुम भी शरीफ लगते हो?
ऐसा क्या किया जो यहाँ बैठे हो.

मैं तो बिजली का बिल समय पर भरता हूँ,
राशन के लिए पंक्ति में सबसे पीछे खड़ा होता हूँ,
बस में जाते हुए खड़ा होकर सफ़र करता हूँ,
नौकरी करते २० साल हुए पर मेरे अफसर को मेरा नाम नहीं पता,
भ्रष्टाचार मैं करता नहीं, किसी अबला का अपमान मैं करता नहीं,
तुम बताओ भाई तुम्हें क्या हुआ?

भाई मेरी भी यही गाथा है,
पर मेरी गाथा में अलग ये है की मेरे पास नौकरी नहीं है,
अपने माता पिता की सेवा करता हूँ,
नौकरी के लिए पंक्तियों में लगता हूँ,
मैं तो नौकरी के लिए किसी नेता के पास नहीं जाता,
कभी किसी को पैसा नहीं खिलाता,
तो फिर मैं यहाँ क्यों?

पास में खड़ा पुलिस अफसर जो ये सब सुन रहा था,
बोला-
भाई सड़क पे तो तुम दोनों सही थे,
महंगाई की मार से तुम दोनों त्रस्त हो,
कभी पुलिस स्टेशन देखा नहीं,
कभी बेईमानी की नहीं,
पर फिर भी मुझे तुम्हें पकड़ना पड़ा,
क्योंकि तुम एक आम आदमी हो,
और आम आदमी होना भारत में गुनाह है.

दोनों व्यक्ति दंग , एक दूसरे को देखते रह गए,
पुलिस वाला बोला,
भाई अगर तुम वो सब करलेते,
तो तुम यहाँ शासन करते और......
और.....
कोई और आम आदमी अन्दर होता,
तुम नहीं.....!!!

-रविन्द्र सिंह, दिनांक १२-०६-२०११, जींद 

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