"शब्दों से सुनो, बंदूक की ध्वनि निकलती है, कलम स्याही नहीं, बारूद के अक्षर उगलती है !" कलम तब हाथ में हुआ करती थी, जो अब फेसबुक से आग उगलती है. श्री अन्ना हजारे का मिशन यहीं तो शुरू हुआ था जो राष्ट्रव्यापी आन्दोलन बन गया है. कहा जाता है कोई भी क्रांति तब तक सफल नहीं होती जब तक उसे जनता का समर्थन हासिल न हो. भारत वर्ष की विडम्बना यही है, इतनी बड़ी जनसँख्या के बावजूद भी कोई भी क्रांति आज तक पूरी तरह से सफल नहीं हुई.1857 की क्रांति को ही ले लीजिये, क्रांति के नायकों को भारत वर्ष के सिपाहियों और कुछ गद्दार राजाओं ने समाप्त किया. क्रांति असफल हुई. बापू का असहयोग आन्दोलन जो एक बड़ी क्रांति के रूप में परिवर्तित हो गया था, चौरी चौरा में हुई एक छोटी सी भूल के कारण असफल हुआ.1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन तो था ही कमाल का, 30 करोड़ के ऊपर जनसँख्या के बावजूद भी कुछ लाख लोग इसे चलाते रहे. वह तो भला हो द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश को मिली हार का, जो उन्हें अपनी खुद की समस्याओं के कारण भारत को छोडना पड़ा, वरना आजादी तो बहुत दूर थी. अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले नेताजी सुभाष चंदर बोस ने कहा था की मुफ्त में मिली आजादी देश वासियों को हजम नहीं होगी और वे भ्रष्ट बन जायेंगे. नेहरु जी जैसे कमरों में बंद नेता प्रधानमन्त्री बना दिए गए, और पटेल जैसे नेता पीछे छोड़ दिए गए. ये विडम्बना ही तो है कि नेहरु के परिवार में इस पीढ़ी को छोड़ कर सब पीढ़ियों को भारत रत्न से नवाजा गया और भारत वर्ष को अखंड बनाने वाले पटेल को गुजरात के बाहर कोई पूछता नहीं. नेहरु जी ने पटेल जी से एक ही जनपद माँगा था अपनी मर्जी से भारत में मिलाने के लिए, वह था कश्मीर, देखिये इसका क्या हाल है. हमारा इतिहास एतिहासिक भूलों से भरा हुआ है, जब दुनिया पूंजीवाद की और भाग रही थी नेहरु जी हमें समाजवाद की और ले गए जो रूस चला रहा था, चीन को अपना भाई घोषित किया. देखिये क्या नतीजा निकला, रूस का समाज वाद कबका असफल हो चुका, दुनिया की सबसे बड़ी ताकत अब ११ मुल्कों में बाँट गयी है और चीन नें 1962 में भारत पर आक्रमण कर दिया. इंडोनेशिया, मलेशिया जैसे छोटे मुल्क तरक्की में हमसे कहीं आगे चले गए और भारत अपने आप को पूंजी वाद से तरक्की के राह पर ले जा रहा है, 1948 के कश्मीर पर पाकिस्तान के आक्रमण पर जब भारत कि सेनायें कश्मीर से पकिस्तान को खदेड़ ही रही थी कि नेहरु जी को फिर सूझी कि संयुक्त राष्ट्र के पास चला जाये और संयुक्त राष्ट्र ने युद्ध विराम करवा दिया, नतीजा आधा कश्मीर पकिस्तान के पास चला गया. फिर आई एक और एतिहासिक भूल, तिब्बत को चीन का भाग घोषित करने वाला पहला मुल्क भारत था, अब चीन भारत में से अरुणाचल प्रदेश चाहता है और लद्दाख पर आँखें टेढ़ी करता है. ये तो हुआ नेहरु जी का कार्यकाल. आगे चलते हैं इंदिरा जी के कार्यकाल की और, जो लौह महिला कहलाती हैं. उनके कार्यकाल में व्यापक भ्रष्टाचार को देख कर भारत में एक व्यापक जन आन्दोलन चला श्री जय प्रकाश नारायण के नेत्रित्व में. देश की इस क्रांति को सम्पूर्ण क्रांति के नाम से जाना जाता है. देश बदल ही रहा था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा जी का चुनाव अवैध घोषित कर दिया, खिसियाई हुई इंदिरा जी ने आपात काल की घोषणा कर दी. कोई पूछे की आपातकाल की परिस्थितियाँ कहाँ आई? नेहरु जी भारत रत्न, इंदिरा जी भारत रत्न. फिर उनका बेटा भारत रत्न. अगली भारत रत्न होंगी त्याग की मूर्ति सोनिया मैडम, फिर उनका बेटा राहुल, फिर आगे का पता नहीं, राहुल ने शादी की नहीं, शायद प्रियंका का बेटा बने भारत रत्न.
इन एतिहासिक भूलों को आखिर भारत कब तक बर्दाश्त करेगा.
ये कलम अब रुकेगी नहीं, ये कलम अब झुकेगी नहीं. श्री अन्ना हजारे ने एक एतिहासिक भूल को आज समाप्त कर दिया, उस महान आत्मा को शत शत नमन. श्री राम धारी सिंह दिनकर की कविता से ये नोट समाप्त करता हूँ:
"जला अस्थियां बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल।
कलम, आज उनकी जय बोल
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल।
कलम, आज उनकी जय बोल
पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल।
कलम, आज उनकी जय बोल
अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल।
कलम, आज उनकी जय बोल"